Wednesday, 20 August 2025

कलम से कविता तक

"जला है जिस्म,दिल भी जल गया होगा।

कुरेदते हो क्यों अब राख,जुस्तजू क्या है"

"धनी सो पुरुष जस कीर्ति जासू,

फूल मरे पै मरे ना बासू ।"

No comments:

Post a Comment